बहुत-सी तस्वीरें समेटे एक एलबम हूँ इतने सारे दृश्यों से जड़ा भरा हुआ इतनी छवियों से यह टूटी हुई-बिखरी हुई किसकी छवि है ये लकीरें किन मर्मों तक पहुँच हैं क्यों हूँ ऐसा कि न पूरा कह पाता हूँ न रह जाता हूँ चुप ही
हिंदी समय में प्रेमशंकर शुक्ल की रचनाएँ